स्कूल की एक कक्षा में रहते हुए, रोज़ स्कूल जाना होता है, कॉपी सम्भाल के रखना होती है, नियम का पालन करना होता है। 12+12 को सीधे 24 लिख सकते जबकि उस कक्षा में रहते हुए carry forward इत्यादि पूरा लिखकर दिखाना होता है। लेकिन उस कक्षा को उत्तीर्ण कर लेने पर पुरानी कॉपी रद्दी में भी दे सकते है।
उसी प्रकार सन्तत्व के जो गुण शास्त्रों और लोक कथाओं में आते है वह बहुत अथक प्रयत्न और ईश्वर भक्ति के पश्चात प्राप्त होते है।
जो लोग उस स्तिथि को आदर्श मानकर मार्ग में है, उन के लिए प्रक्रिया का बहुत महत्व होता है। छोटी-छोटी बातों का ध्यान रखना होता है। अनेक लोग वसुधैव कुटुम्बकम, मानसिक दृढ़ता , ऐसा सन्त कैसा जो दुसरो की सहायता ना करें   इत्यादि  ऐसे अनेक तर्क देते है और “यात्री” उन लोगों की बातों में आकर मार्ग में ही नक्शा फाड़ के फेक दे,  तो फस गया।

भागवत् पुराण से एक कथा  – यात्री होना और यात्रा पूर्ण होना।

व्यास देव के पुत्र शुक देव को वैराग जाग गया और वे वन की ओर दौड़े। व्यास देव भी अपने पुत्र के पीछे-पीछे दौड़े। एक सरोवर में कुछ युवतियाँ स्नान कर रही थी, जिन्होंने शुक देव को देखकर कुछ नहीं किया, लेकिन व्यास देव के आते ही उन्होंने वस्त्रों से अपने आप को ढक लिया।

यह देख व्यास देव ने पुछा- मैं वृद्ध हूँ और मेरा पुत्र युवा, उसे देखकर आप लोगों ने वस्त्र नहीं ढके, लेकिन मुझे देखकर ढक लिए, ऐसा क्यों?

वे देवियाँ बोली – आपके पुत्र संसार से ऊपर उठ चुके है, स्त्री-पुरुष का भेद नहीं रहा उनको, लेकिन आप अभी सांसारिक है, इसलिए।

The internalization of knowledge is essential, as well as ‘process of internalization’ is equally important.