यदि स्वतंत्र होने पर भी कोई बन्दी परतंत्रता की बेड़ियों पर हार-पुष्प अर्पित कर उन्ही के साथ उत्सव मनाए, कारावास में दी जाने वाली यातनाओं को अपना रीति-जीवन पद्धति बना ले, तो ऐसे व्यक्ति को आप क्या कहेंगे?
आप कहेंगे, महोदय आप स्वतंत्र हो चुके है, अपनी अस्तित्व पहचानिए, आत्म-चिन्तन व आत्म-विश्लेषण करिए और मौलिक और सांस्कृतिक रूप से भी स्वतंत्रता का आनन्द लीजिये
अपने जीवन में सकारात्मकता का संचार होने दीजिए, मानसिक परतंत्रता से बाहर निकल कर अपने जीवन को अपनी संस्कृति के अनुरूप बनाइए
यही बात हम सबके के भी लागू होती है।
स्वतंत्र हो जाने पर भी Parade (जो कि अंग्रजो द्वारा परतंत्र रखने का सबसे बड़ा प्रतीक था) करते रहते है। धरती माँ को पैर से जोर जोर से पीट कर प्रसन्नता व्यक्त करते है। एक हाथ से अभिवादन करते है…और पता नहीं क्या क्या!!
इन सब विवशताओं का त्याग कर, नए तरह से स्वतंत्रता मनाने की आवश्यकता है।
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