How to end corruption?

भ्रष्टाचार का नाम सुनते ही, किसी पुलिस वाले का अथवा सरकारी विभाग का स्मरण आ जाता है । पाठक गण में अधिकतर कि हाँ हो सकती है !

हम लोग भ्रष्टाचार का समाधान कारण नहीं निकाल पाये है  – उसका कारण है कि हमने समस्या को और उसके मूल कारण को जाना ही नहीं।

भ्रष्टाचार केवल 50 रु पुलिस वाले के द्वारा अनाधिकृत रूप से मांगे जाने, या सरकारी विभाग के बाबू द्वारा file आगे बढ़ाने के लिए मांगे जाने वाले सेवा शुल्क में नहीं है। यदि इसको नियन्त्रण में लाने से भ्रष्टाचार मिटाया जा सकता था, तो कभी का हो गया होता।

अमेरिका व अन्य यूरोपीय देशो में ऐसी समस्या नहीं है…फिर भी वहाँ बहुत भ्रष्टाचार है !! यदि technology इत्यादि से इसका समाधान होता तो कई देश जो हमसे उसमें आगे है, वहाँ भ्रष्टाचार क्यों होता ? मीडिया द्वारा कल्पित एवं रचित समाज के विवरण के स्थान पर स्वयं यदि थोड़ी शोध करके देखे तो हम पाएंगे कि भ्रष्टाचार का मूल कारण – विश्व भर की मूल मानिसकता से सम्बन्धित है।

चिन्तन करें तो पता चलेगा, विश्व के लगभग सभी राष्ट्रों के संविधान “अधिकार” (rights) केन्द्रित है। कर्त्तव्य (duties) बहुत संक्षेप में वर्णित है।

जब हम दूसरों के कर्त्तव्य को अपना अधिकार मानने लग जाते है…तो हम अपने कर्तव्यों से विमुख होने लगते हैं। “worldview” (मूल मानसिकता) कि ऐसी हो गयी है कि हम सभी इसी चिन्तन में रहते है कि “मुझे क्या मिलना चाहिये, मुझे क्या मिल जाए….”

इसका असर यह हुआ है कि एक बच्चा माता-पिता के प्रति कर्तव्य कि बात ना करते हुए, अपने अधिकारों की बात करता है । माता-पिता अपने कार्यालय में अपना अधिकार मांग रहे, स्कूल के अध्यापक अपना अधिकार मांग रहे है… ।

हमारे समाज का ध्यान “करने” और “देने” के स्थान पर “मिलने” और “अधिकार” पर हो गया। इससे लोभ लालच बढ़ने लगा। भोग -विलास में यदि बुद्धि प्रवृत्त हो जाय तो वको वहां से निकल पाना मुश्किल कार्य होता है।

इस हेतु यदि भ्रष्टाचार को निर्मूलन करना है तो सामाजिक स्तर पर, पारिवारिक स्तर पर नैतिक एवं सांस्कृतिक क्रान्ति लानी होगी।

निष्ठावान भारतीयों की सेना जब हमारे स्कूल-कॉलेज से निकालकर समाज में अपना योगदन प्रारम्भ करेगी (सरकारी नौकरी, private नौकरी) तो स्वयं ही बदलाव आएगा।

भगवद्गीता के एक श्लोक से इस निबन्ध को विराम दिया जाता है –
कर्मण्ये वाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन ।
मा कर्म फल हेतुर्भुर मातेसंगोस्त्वकर्मणि।।

Only right is ‘right to duty’ 

एक अधिकार है – और वो है कर्म का अधिकार