एक समय की बात है Science ( विज्ञान नहीं ) नाम का राक्षस था ….  वह बहुत क्रूर था …..मनाव जाति का विनाश करना  चाहता था.… लेकिन उसे चर्च ने बंदी बना रखा था ….कारावास में हि उसने घोर तपस्या की ……भारत में जिस प्रकार ब्रह्मा, विष्णु, शिव ….राक्षसों  को भी बराबर अधिकार देते हुए उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर उन्हें वरदान देते हैं ….वैसे ही यीशु ने उसकी तपस्या का फल देना था

हे यीशु !! … मुझे वरदान दीजिये  … “मैं जिसके सिर पर हाथ रख दू … उसको proof, reason का भूत लग जाए … उसका  आस्था, विश्वास ख़त्म हो जाए ….और उसके बाद वह व्यक्ति भी जिसके उप्पर हाथ रख दे .. उसका भी यही हर्ष हो …”

यीशु ने भस्मासुर की कहानी सुनी  हुई थी …… तो उन्होंने तथास्तु कहने से पहले वचन लिया ….. की science इस वरदान का प्रयोग उनके उप्पर नही करेगा …. उसने वचन दिया और फिर यीशु उसको वरदान देकर चले गए …

राक्षस ने चर्च को किसी विषय पर पर  बात करने आने  के लिए प्रार्थना की  ….. ….चर्च आई …फिर राक्षस ने एक प्रस्ताव रखा “एक अदालत जैसी बने , जहा मुझ पर  मुकदमा जाए ….. अगर मैं जीता तो आप मुझे मुक्त कर देना …. और अगर हारा  तो आप तो मेरा वध कर देना

चर्च ने कहा जज हमारा आदमी होगा  …. विज्ञान ने सहर्ष स्वीकार किया ….

अदालत में जाते हि .. राक्षस ने न्यायाधीश के सर पे हाथ रख दिया … और रास्ते में, गलियों में , अदालत में जितने लोग मिले सबके सर पे हाथ रख दिया …

बस .. फिर जब मुकदमा चला … विज्ञान के reasonism का संक्रमण बहुत बुरी तरह से फैला …

फिर उसके 2 बच्चे हुए — physical science और social science  …

physical science का काम था … धातुओं से मशीनों बनाना और social science का काम इंसान को मशीन बनाना  …..

ये सब देख कर …. जो सच्चे आस्थावान थे …. उन्होंने यीशु की घोर तपस्या की …. यीशु प्रसन्न हुए, दर्शन दिए ….. लोगो ने पूछा प्रभु …. साइंसासुर से कैसे बचे ?

यीशु बोले …. भारत जाओ … वाहा सदैव आस्था बानी रहती है …. आस्था का बीज फूटता रहता है ……. साइंस को दिया वरदान वहा के लोगो पे असर नहीं करता है. …. अगर होता भी है तो … ज़्यदा  से ज़्यदा  उस व्यक्ति की आस्था साइंस पर आ जाती है बस ….. ये कह कर यीशु अंतर्ध्यान हो गए ..