अभिभावकों द्वारा तन-मन-धन सब कुछ त्याग कर बच्चों का लालन पालन किया जाता है।
स्कूल छोड़ने वाले ऑटो / बस वाले भैया, सफाई कर्मचारी…ऐसे अनेक श्रमिकों के श्रम से और शिक्षकों के अथक प्रत्यन से बच्चे पढ़ लिख पाते है
कृषक तपती धूप में अनाज उत्पन्न करता है, घर पे भोजन बनता है, जिससे बच्चे का पोषण हो पाता है।
पास-पड़ोसी, रिश्ते नातेदार, सभी उस बालक का ध्यान रखते है, संस्कार देकर उसकी उन्नति में सहायक होते है।
भारत के अथक परिश्रमी लोगों द्वारा निष्ठा से कार्य करके अर्जित धन से कर (tax) सरकार को भरते है। IIT व अन्य संस्थान को सरकार उन्ही पैसों से मदद करती है।
इतना ही नही यहाँ की नदियां उसको जल देती है, पेड़ शुद्ध वायु… प्रकृति भी सब कुछ देती है।
फिर एक दिन वह इन सबका लाभ उठाकर “समर्थ” बन जाता है। और अब उसको “opportunity” की तलाश रहती है। अभी भी स्वार्थ वश खुदके विकास, आराम के लिए तड़प बनी रहती है।
और वह सामर्थ्य का विदेश जाकर, वहाँ योगदान देना शुरू कर देता है।
जब कोई पूछता है, अपने देश / परिवार के लिए सोच लो थोड़ा।
तो जवाब आएगा – $$$$$$$$$$$$$$$ भेज कर देश सेवा करता हूँ foriegn currency भेजता हूँ। और परिवार को सुख समृद्धि देता हूँ – विदेशी फ़ोन, tv, AC, washing machine, car,…सब कुछ दिया।**
कृतघ्नता का इससे बड़ा उदाहरण कही नही देखने को मिलता है।
विवश बूढ़े माता-पिता और स्नेहिल मातृ भूमि मुस्कुराते हुए उसको आशीर्वाद दे देती। कभी यह नही बोलती – “तन मन धन” में धन आखरी में आता है तन और मन के बिना धन कुछ नहीं।
**PS: जो पैसा ऐसे महानुभाव भजेते है, वो पैसा पुनः Apple, Microsoft जैसी कंपनियों को चला जाता है, जब यहाँ उनके उत्पाद खरीदे जाते है। भारत का व्यक्ति, विदेश जाकर इन्ही कंपनियों में कार्य करता है, शोध अनुसंधान करके उत्कृष्ठ उत्पाद बनाता है, फिर भारत इन उत्पाद का आयात करता है। भारत से दोनों हो गया – brain drain, wealth drain.
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