भारतीय परम्परा में साप्तहिक / पखवाड़ा / मासिक अवकाश तिथि अनुसार रखते है अथवा वार के अनुसार जो रखते है वह देश-काल-ऋतु एवं अन्य कारणों को विचार करके रखते है।
कुछ गुरुकुल प्रतिपदा को अवकाश रखते है, कुछ किसी और तिथि के दिन । श्रमिक भी अमावस्या के दिन अवकाश रखते है। ऐसे ही ग्राम में, नगर में सामाजिक सन्तुलन को ध्यान में रख कर हर प्रकार के व्यवसयी अलग- अलग वार-तिथि को अवकाश रखते है। अभी कुछ दिनो पहले ही ज्ञात हुआ कि बनस्थली विद्यापीठ में रविवार अवकाश ना होते हुए, मंगलवार होता है, उन्होंने जिस ग्राम में विद्यापीठ स्थापित की , वहाँ नियम का पालन किया। ऐसा करना उस ग्राम के निवासियों की परम्परा का सम्मान करने साथ-साथ अनेक दृष्टिकोणों से लाभदायक है।
लेकिन ईसाईयों और corporations ने भारत में आने पर ऐसा नहीं किया। Standardization के नाम पर विविधताओं को कुचल कर उन्होंने स्वयं को और पुरे भू-मंडल को अज्ञानता-वश बहुत हानि पहुँचाई है। ठण्डे प्रदेश जहा बर्फ ढकी रहती है, वह सूर्य की रौशनी सुलभता से प्राप्त नहीं होती। लेकिन रविवार को अन्य दिन की तुलना में थोड़ी अधिक ऊर्जा होती है, जिसका भरपूर लाभ मानव – जीवन के श्रेष्ठ कार्य (ईश्वर-भक्ति) में ईसाई लोग लगा देना चाहते थे , सो उन्होंने किया।
लेकिन भारत में तो सूर्य सातों दिन उपलब्ध है, ३०० दिन उपलब्ध है। हमारे लिए ऐसी कोई प्राकृतिक शर्त नहीं हैं , तो हम क्यों अपने कार्य करने के मुख्य दिन आलस और तन्द्रा में अपना समय नष्ट करें। हम लोगों को किसी चर्च का subscription लेने की आवश्यकता नहीं होती है और ना ही ‘absent’ होने पर कोई हमे काफ़िर घोषित कर देगा।
प्रत्येक वार के अपने-अपने विशेष गुण होते है। चूंकि रविवार सबसे अधिक लोगों द्वारा अवकाश रखा जाता है, इसलिए यहाँ रविवार को कार्य किये जाने के लाभ बताए जाते है :
1.सूर्य का वार होने से इस दिन भू-मण्डल में बाकी दिनों से अधिक सूर्य किरणें आती है, जिससे ऊर्जा बनी रहती है
(जैसा ऊपर लिखा गया) ।
2. तामसिक कार्य जो corporations अपने employee के द्वारा करवाते है, कसाई खाने, anti-national ngos इत्यादि, रविवार अवकाश होने के कारण बन्द रहते है। अतः भू मण्डल पर तामसिकता कम होती है |
3. जैसे ब्राह्म-मूहुर्त में तामसिक प्राणी शयन करते रहते है, वैसे ही रविवार को सभी यातो सोते रहते है, घर पर बैठे रहते या घुमते फिरते रहते है।
इसलिए रविवार का भरपूर लाभ उठायें
Recent Comments